तिलचट्टा का जीवन परिचय



यह एक तिलचट्टा है

कॉकरोच को तिलचट्टा भी कहते हैं कॉकरोच आर्थोपोडा संघ का प्राणी है कॉकरोच शब्द की उत्पत्ति एक स्पेनी शब्द कुकरेचा से हुई है जिसका अर्थ है कि तेजी से गति करने वाला यह समस्त संसार में पाया जाता है यह समस्त भारत में भी पाया जाता है भारत में इसकी मुख्य रूप से पाई जाने वाली 3 जातियां हैं
 कॉकरोच की 3 जातिया है ;  
    परिप्लेनेटा अमेरिकाना  
ब्लाटा ओरिएंटेलिस
ब्लाटेला जर्मेनियम

परिप्लेनेटा अमेरिकाना के बारे में ;
 वर्गीकरण 
संघ  - आर्थोपोडा
  वर्ग  -   इन्सेक्टा   
गण   - आर्थोप्टेरा 
वंश   -परिप्लैनेटा 
   जाति  -अमेरिकाना    
            
*   




            *   प्रकृति तथा आवास  -
                                            कॉकरोच एक मुक्त जीवी तथा रात्रि चर प्राणी है यह नम अंधेरे वाले स्थानों जैसे रसोईघर भंडार गृह अलमारी के नीचे आदि स्थानों पर पाया जाता है यह सर्वाहारी प्राणी है यह तेजी से दौड़ने वाला प्राणी है यह खतरे के समय उड़ान भी भर सकता है परंतु यह लंबी उड़ान नहीं  भर सकता है इसका भोज्य पदार्थ रोटी ब्रेड सब्जी  मांस आदि है। 

 *  बाहरी संरचना 
 कॉकरोच का शरीर  पृष्ठ अधर पर चपटा  तथा द्विपार्श्व सममित होता है इसके शरीर की लंबाई लगभग 2 से 4 सेंटीमीटर तथा चौड़ाई 1 से 1.5 सेंटीमीटर होती है इसका रंग चमकीला भूरा होता है कॉकरोच का शरीर खंडों में बंटा रहता है इसे वास्तविक विखंडन भी कहते है अवस्था में 20 खंड  तथा वयस्क अवस्था में 19 खंड पाए जाते हैं संपूर्ण शरीर सिर तथा  वक्ष तथा उदर में विभाजित रहता है 





    (1)  सिर  -
कॉकरोच का सिर त्रिभुजाकार बहुत गहरे रंग का होता है यह पतली व  लचीली ग्रीवा की सहायता से 90 डिग्री के कोण पर वक्ष से लगा होता है कॉकरोच  का सिर  अधोहनु  प्रकार का होता है इसका सिर कूल 6 भ्रूणिय खंडों से मिलकर बना होता है इसके सिर पर वृक्काकार एक जोड़ी संयुक्त नेत्र पाए जाते हैं जो कि वर्टेक्स के दोनों तरफ स्थित रहते हैं प्रत्येक संयुक्त नेत्र के पास सरल नेत्र पाए जाते हैं यह सक्रिय नहीं होते हैं इसमें प्रतिबिंब का निर्माण नहीं होता है परंतु यह प्रकाश के प्रति  संवेदनशील होते हैं कॉकरोच के सिर में 1 जोड़ी शृंगिकाएं में पाई जाती है जो कि संयुक्त नेत्रों के पास गड्ढे में स्थित रहती है प्रत्येक शृंगिका तीन भागों में बांटी जा सकती है (क) स्केप   -   यह आधार भाग होता है जो कि सिर से जुड़ा होता है  । 
(ख)   वृंत   -   यह मध्य खंड होता है जिस पर जॉनस्टन अंग पाए जाते हैं यह गति के प्रति संवेदनशील होते हैं। 
(ग)   कशाभिका    - यह धागेनुमा  बहुखण्डीय संरचना है यह स्पर्शग्राही तथा गंदग्राही होता है
(2)   वक्ष -  
 कॉकरोच का वक्ष  3  खंडों से मिलकर बनता है वक्ष को तीन भागों में बांटा जा सकता है 
1.अग्र वक्ष
  2. मध्य वक्ष
   3.  पश्च  वक्ष
   कॉकरोच के  वक्ष  में 3 जोड़ी टांगे तथा 2 जोड़ी पंख पाए जाते हैं 2 जोड़ी श्वांस रन्ध्र भी वक्ष मे पाए जाते हैं । 
(3)    उधर  - कॉकरोच के उदर में भ्रूणीय अवस्था में 11  खण्ड तथा वयस्क  अवस्था में दस खण्ड  पाए जाते हैं। 



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